मंगलवार, 29 मई 2012

नाम बड़े और दर्शन छोटे


दिल्ली की ललितकला अकादेमी द्वारा प्रकाशित और कला महाविद्यालय, पटना के पूर्व प्राचार्य प्रो॰ श्याम शर्मा द्वारा लिखी गयी पुस्तक ‘पटना कलम’ को देखकर घोर निराशा होती है। यह तथ्यात्मक गलतियों एवं हास्यास्पद भूलों से भरी पुस्तक है। पटना कलम पर सबसे पहला आलेख ब्रिटिश इंडिया में पटना हाईकोर्ट के तत्कालीन जस्टिस पी.सी. मानुक ने लिखा था। यह आलेख बिहार रिसर्च सोसायटी के 1943 के सितम्बर महीने के जर्नल में छपी थी। पटना सिटी में मुगल लघु चित्रकला पर शोध करते हुए पी.सी. मानुक का परिचय पटना कलम की तस्वीरों से हुआ था।
बाद के दिनों में उसी आलेख को आधार मानते हुए कला इतिहासकार मिल्ड्रेड आर्चर ने और भी शोध किया। मिल्ड्रेड आर्चर ने ईश्वरी प्रसाद और श्यामबिहारी लाल से बातचीत की। ईश्वरी प्रसाद पटना कलम के चित्रकार शिवलाल के पोते थे और कलकता स्कूल आफ आर्ट के वाइस प्रिंसिपल रह चुके थे। श्यामबिहारी लाल एक अन्य चित्रकार बेनीलाल के पुत्र थे। काफी शोध के बाद पटना कलम पर ‘पटना पेंटिंग’ नामक इनकी पुस्तक प्रकाशित हुई।
कालान्तर में पटना कलम पर जो भी आलेख लिखे गये वे पी.सी. मानुक या मिल्ड्रेड आर्चर के आलेख एवं पुस्तक पर ही आधारित रहे। किसी ने मौलिक शोध कर इसे आगे नहीं बढ़ाया।
आकर्षक जिल्द, खुबसूरत पन्नों और शानदार तस्वीरों से सजी पुस्तक पटना कलम निराशा के साथ-साथ क्षोभ भी पैदा करता है। विश्वास ही नहीं होता है कि यह पुस्तक एक वरिष्ठ चित्रकार ने लिखी है। लगता है, यह पुस्तक बहुत जल्दी में और बहुत उतावलेपन के साथ लिखी गयी है। नहीं तो इस तरह की हास्यास्पद एवं तथ्यात्मक गलतियां नहीं होती।
लेखक ने पृष्ठ 23 पर लिखा है ‘सन् 1811 में अंग्रेज इंजीनियर अधिकारी फ्रांसिस बुचन ने पटना के विकास के लिए …………… ।’ वास्तव में फ्रांसिस बुचन नही – उसका उच्चारण फ्रांसिस बुकानन (Francis Buchanan) होना चाहिए। बुकानन को हम सबों ने हिन्दी में कई बार पढ़ा है। फ्रांसिस बुकानन स्काटिश सर्जन थे, जिन्हें सरकार ने सर्वे का काम सौंपा था।
कलाकारों की जन्म तथा मृत्यु तिथियों में भी तथ्यात्मक भूलें हैं। मिल्ड्रेड आर्चर के अनुसार शिवदयाल का काल 1820-1880 है जबकि लेखक ने 1850-1887 दिया है। गोपाल लाल का काल आर्चर के अनुसार 1840-1901 है जबकि लेखक ने 1883-1911 दिया है। इसी तरह बेनीलाल का काल लेखक ने 1885-1911 दिया है जबकि मिल्ड्रेड के अनुसार यह 1850-1901 है। बहादुर लाल का काल लेखक ने 1850-1910 दिया है जबकि मिल्ड्रेड ने 1850-1933 दिया है। मिल्ड्रेड ने यमुना प्रसाद का काल 1859-1884 दिया है जबकि लेखक ने यह 1839-1884 बताया है।


लेखक के अनुसार निसार मेहंदी का जन्म 1930 को हुआ है जबकि उनके पुत्र मोहम्मद हादी का जन्म उनसे पहले 1892 को हो चुका था। लेखक ने पटना कलम के चित्रकारों में पटना आर्ट कालेज के संस्थापक राधामोहन प्रसाद, दामोदर प्रसाद अम्बष्ट, श्यामलानन्द तथा तारकनाथ बड़ेरिया को शामिल किया है। ‘पटना कलम’ पर एक डाक्युमेंट्री फिल्म के निर्माण के दौरान इन पंक्तियों के लेखक को स्वर्गीय महादेव प्रसाद से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ था। एक वीडियो साक्षात्कार में राधामोहन प्रसाद ने स्पष्ट रूप से कहा था कि ईश्वरी प्रसाद वर्मा ही पटना कलम के आखिरी चित्रकार थे। उनका स्वयं के बारे में कहना था कि उन्होंने शुरूआत भले ही पटना कलम से की थी किन्तु क्योंकि वह श्रमसाध्य था इसलिए वे शीघ्र ही उससे विमुख हो गये और दूसरी प्रचलित तकनीकियों में काम करने लगे।
मोहम्मद हादी के बारे में लेखक लिखते हैं ‘मोहम्मद हादी यथार्थवादी चित्रकार थे, पर इनके कुछ चित्र पटना कलम के चित्रकारों की तरह भी हैं। तारकनाथ बड़ेरिया के बारे में वे लिखते हैं ‘तारक बाबू ने पटना कलम पर अनेक लेख लिखे जो अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए-ऐसा लेखक ने उनके बारे में लिखा है। तो क्या इस तरह तारकनाथ बड़ेरिया भी पटना कलम के चित्रकार हो गये?
बाद में 117वें पृष्ठ की अंतिम पंक्तियों में लेखक स्वयं लिखते हैं ‘बाबू ईश्वरी प्रसाद वर्मा पटना कलम के अंतिम चित्रकार कहे जा सकते हैं।’ यह कैसा विरोधाभास है?
पुस्तक के पृष्ठ 25 पर छपी पटना कलम की तस्वीर में रसोइयो को लोहार बताया गया है। और पृष्ठ 28 पर बेकरी वाले को भी लोहार। पृष्ठ 88 पर छपी नवाब वाजिदअली शाह की तस्वीर को एक नवाब बताया गया है।
पटना कलम पर एक मुकम्मल पुस्तक की जरूरत एक अरसे से महसूस की जा रही थी। इस पुस्तक से एक उम्मीद जगी थी – जो खत्म हो गयी। इसमें मौलिक शोध का नितांत अभाव है। लेखक मिल्ड्रेड आर्चर और पी.सी. मानुक से आगे क्या – उसके समीप भी नहीं पहुंच पाया है। इससे तो अच्छा होता मिल्ड्रेड आर्चर की ही पुस्तक (यह आउट आफ प्रिंट है) को फिर से प्रकाशित किया जाता।

अरुण सिंह

सौजन्य :-
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